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Namokar Mantra | नवकार मंत्र महामंत्र

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Namokar Mantra |  नवकार मंत्र महामंत्र Namokar Mantra  In Hindi णमो   अरिहंताणं , णमो सिद्धाणं , णमो आयरियाणं , णमो उवज्झायाणं , णमो लोए सव्व साहूणं । एसोपंचणमोक्कारो , सव्वपावप्पणासणो । मंगला णं च सव्वेसिं , पडमम हवई मंगलं । You May Also Like The Below Links: भक्तामर स्तोत्र (संस्कृत) |Bhaktamar In Sanskrit श्री पार्श्वनाथ चालीसा (अहिच्छत्र) | श्री पार्श्वनाथ चालीसा Namokar Manter In English NAMO ARIHANTANAM NAMO SIDDHANAM NAMO AYARIYANAM NAMO UVAJJHAYANAM NAMO LOE SAVVASAHUNAM ESO PANCH NAMOKARO SAVVA PAVA PANASANO MANGALANANCHA SAVVESIM PADHAMAM HAVEI MANGALAM You May Also Like The Below Links: श्री महावीर चालीसा (चाँदनपुर) | श्री महावीर चालीसा आरती – महावीर स्वामी |आरती महावीर स्वामी We hope You Like " Namokar Mantra | नवकार मंत्र महामंत्र"

भक्तामर स्तोत्र (संस्कृत) |Bhaktamar In Sanskrit

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भक्तामर स्तोत्र (संस्कृत) | Bhaktamar In Sanskrit भक्तामर स्तोत्र (संस्कृत) | Bhaktamar Stotra In Sanskrit वसंततिलकावृत्तम्। सर्व विघ्न उपद्रवनाशक भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा- मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् । सम्यक्प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा- वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् ॥1॥ शत्रु तथा शिरपीडा नाशक यःसंस्तुतः सकल-वांग्मय-तत्त्वबोधा- दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथै । स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥2॥ सर्वसिद्धिदायक बुद्धया विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ, स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोहम् । बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्यःक इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥3॥ जलजंतु निरोधक वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र! शशांक-कांतान्, कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोपि बुद्धया । कल्पांत-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं, को वा तरीतु-मलमम्बु निधिं भुजाभ्याम् ॥4॥ नेत्ररोग निवारक सोहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश, कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृतः । प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य्य मृगी मृगेन्द्रं, नाभ्येति किं निज-शिशोः परि-पालनार्थम्

श्री पार्श्वनाथ चालीसा (अहिच्छत्र) | श्री पार्श्वनाथ चालीसा

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 श्री पार्श्वनाथ चालीसा-Shri Parashnath Chalisa, Jain Bhajan and Jain bhakti Sangrahay श्री पार्श्वनाथ चालीसा-Shri Parashnath Chalisa शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूँ प्रणाम । उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम। । सर्व साधु और सरस्वती, जिन-मंदिर सुखकार । अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन-मंदिर में धार ।। पार्श्वनाथ जगत्-हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी । सुर-नर-असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा ।।१।। तुमसे करम-शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा । अश्वसैन के राजदुलारे, वामा की आँखों के तारे ।।२।। काशी जी के स्वामी कहाये, सारी परजा मौज उड़ाये । इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुँचे ।।३।। हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जगंल में गर्इ सवारी । एक तपस्वी देख वहाँ पर, उससे बोले वचन सुनाकर ।।४।। तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते । तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया ।।५।। निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे । रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मंत्र-नवकार सुनाया ।।६।। मरकर वो पाताल सिधाये, पद्मावति-धरणेन

श्री महावीर चालीसा (चाँदनपुर) | श्री महावीर चालीसा

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श्री महावीर चालीसा- Shri Mahavir Chalisa- Jain Aarti and Path Sangrahay श्री महावीर चालीसा- Shri Mahavir Chalisa- Jain Aarti and Path Sangrahay शीश नवा अरिहन्त को, सिद्धन करूँ प्रणाम । उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम ।।१।। सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकार । महावीर भगवान को, मन मंदिर में धर ।।२।। जय महावीर दयालु स्वामी, वीर प्रभु तुम जग में नामी ।।३।। वर्धमान है नाम तुम्हारा, लगे हृदय को प्यारा प्यारा ।।४।। शांति छवि और मोहनी मूरत, शांत हँसीली सोहनी सूरत ।।५।। तुमने वेष दिगम्बर धरा, कर्म शत्रु भी तुम से हारा ।।६।। क्रोध मान और लोभ भगाया, माया-मोह तुमसे डर खाया ।।७।। तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता, तुझको दुनिया से क्या नाता ।।८।। तुझमें नहीं राग और द्वेष, वीतराग तू हितोपदेश ।।९।। तेरा नाम जगत में सच्चा, जिसको जाने बच्चा-बच्चा ।।१०।। भूत प्रेत तुम से भय खावें, व्यंतर-राक्षस सब भग जावें ।।११।। महा व्याध मारी न सतावे, महा विकराल काल डर खावें ।।१२।। काला नाग होय फन धारी, या हो शेर भयंकर भारी ।।१३।। न हो कोर्इ बचाने वाला, स्वामी तुम्हीं करो प्र

आरती – पंचपरमेष्ठी | पंचपरमेष्ठी आरती

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पंचपरमेष्ठी आरती | आरती – पंचपरमेष्ठी | Panch Parmasthi Aarti | Jain Aarti पंचपरमेष्ठी आरती | आरती – पंचपरमेष्ठी | Panch Parmasthi Aarti | Jain Aarti यह विधि मंगल आरती कीजै, पंच परम पद भज सुख लीजै। पहली   आरती श्री जिनराजा, भवदधि पार उतार जिहाजा ॥ यह विधि ॥ दूजी आरती सिद्धन केरी, सुमरत करत मिटे भव फेरी ॥ यह विधि ॥ तीजी आरती सूर मुनिंदा, जनम-मरण दुःख दूर करिंदा ॥ यह विधि ॥ चौथी आरती श्री उवझाया, दर्शन करत पाप पलाया ॥ यह विधि ॥ पाँचवीं आरती साधु तुम्हारी, कुमति विनाशन शिव अधिकारी ॥ यह विधि ॥ छठी ग्यारह प्रतिमा धारी, श्रावक बंदू आनंद कारी ॥ यह विधि ॥ सातवीं आरती श्री जिनवाणी, धानत स्वर्ण मुक्ति सुखदानी ॥ यह विधि ॥ संजा करके आरती कीजे, अपनो जनम सफल कर लीजे ॥ यह विधि ॥ सोने का दीपक, रत्नों की बाती, आरती करूँ मैं, सारी-सारी राती ॥ यह विधि ॥ जो कोई आरती करे करावे सो नर-नारी अमर पद पावे ॥ यह विधि ॥ Hope You Like " पंचपरमेष्ठी आरती | आरती – पंचपरमेष्ठी | Panch Parmasthi Aarti | Jain Aarti" You May Also Like: जय चंद्रप्रभु द

आरती – महावीर स्वामी |आरती महावीर स्वामी

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महावीर स्वामी  आरती | आरती महावीर स्वामी | Mahaveer Swami Aarti महावीर स्वामी  आरती | आरती महावीर स्वामी | Mahaveer Swami Aarti ऊँ  जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो | कुण्डलपुर अवतारी, त्रिशलानन्द विभो || ऊँ जय महावीर प्रभो || सिद्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी | बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ तपधारी |1| ऊँ जय म0 प्रभो | आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टि धारी | माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी |2| ऊँ जय म0 प्रभो | जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो | हिंसा पाप मिटाकर, सुधर्म परिचार्यो |3| ऊँ जय म0 प्रभो | इह विधि चाँदनपुर में, अतिशय दरशायो | ग्वाल मनोरथ पुर्यो दूध गाय पायो |4| ऊँ जय म0 प्रभो | अमर चन्द को सपना, तुमने प्रभु दीना | मन्दिर तीन शिखर का निर्मित है कीना|5| ऊँ जय म0 प्रभो | जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी | एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी |6| ऊँ जय म0 प्रभो | जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर आवे | होय मनोरथ पूरण, संकट मिट जावे |7| ऊँ जय म0 प्रभो | निशि दिन प्रभु मन्दिर में, जगमग ज्योति जरै | हम सेवक चरणों में, आ

श्री पार्श्वनाथ-आरती | श्री पार्श्वनाथ आरती

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ओं म  जय पारस देवा | स्वामी जय पारस देवा | श्री पार्श्वनाथ-आरती | श्री पार्श्वनाथ आरती | Shri Parashnath Aarti ओं म  जय पारस देवा | स्वामी जय पारस देवा | श्री पार्श्वनाथ-आरती | श्री पार्श्वनाथ आरती | Shri Parashnath Aarti ओं म  जय पारस देवा, स्वामी जय पारस देवा  ! सुर नर मुनिजन तुम चरणन की करते नित सेवा | ( ओं म  जय पारस देवा) पौष वदी ग्यारस काशी में आनंद अतिभारी, अश्वसेन वामा माता उर लीनों अवतारी |  ओं म  जय पारस देवा श्यामवरण नवहस्त काय पग उरग लखन सोहैं, सुरकृत अति अनुपम पा भूषण सबका मन मोहैं | . ओं म  जय पारस देवा जलते देख नाग नागिन को मंत्र नवकार दिया, हरा कमठ का मान, ज्ञान का भानु प्रकाश किया |  ओं म  जय पारस देवा मात पिता तुम स्वामी मेरे, आस करूँ किसकी, तुम बिन दाता और न कोर्इ, शरण गहूँ जिसकी |  ओं म  जय पारस देवा तुम परमातम तुम अध्यातम तुम अंतर्यामी, स्वर्ग-मोक्ष के दाता तुम हो, त्रिभुवन के स्वामी |   ओं म  जय पारस देवा दीनबंधु दु:खहरण जिनेश्वर, तुम ही हो मेरे, दो शिवधाम को वास दास, हम द्वार खड़े तेरे |  ओं म  जय पारस देवा विपद-विकार मिटाओ मन

जय चंद्रप्रभु देवा- आरती | जय चंद्रप्रभु देवा

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जय चंद्रप्रभु देवा- आरती | जय चंद्रप्रभु देवा | Chandra Prabhu Aarti जय चंद्रप्रभु देवा- आरती | जय चंद्रप्रभु देवा जय चंद्रप्रभु देवा, स्वामी जय चंद्रप्रभुदेवा । तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी, पार करो देवा, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… मात सुलक्षणा पिता तुम्हारे महासेन देवा चन्द्र पूरी में जनम लियो हैं स्वामी देवों के देवा तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… जन्मोत्सव पर प्रभु तिहारे, सुर नर हर्षाये रूप तिहार महा मनोहर सब ही को भायें तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… बाल्यकाल में ही प्रभु तुमने दीक्षा ली प्यारी भेष दिगंबर धारा, महिमा हैं न्यारी तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… फाल्गुन वदि सप्तमी को, प्रभु केवल ज्ञान हुआ खुद जियो और जीने दो का सबको सन्देश दिया तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… अलवर प्रान्त में नगर तिजारा, देहरे में प्रगटे मूर्ति तिहारी अपने अपने नैनन, निरख निरख हर्षे तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥